Tuesday, November 15, 2022

 #जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज_की_प्रचारिका #सुश्री_श्रीधरी_दीदी_द्वारा_विशेष_लेख!

मानव देह प्राप्त सभी जीव परम सौभाग्यशाली हैं। देवताओं से भी अधिक बड़भागी
हैं। नारद पुराण में कहा गया -

‘दुर्लभं मानुषं जन्म प्रार्थ्यते त्रिदशैरपि‘

अर्थात् देवता भी इस देह को पाने के लिए लालायित रहते हैं लेकिन यह देह उनके
लिये भी दुर्लभ है। रामायण कहती है -
‘कबहुँक करि करुणा नर देही, देत ईश बिनु हेतु सनेही‘
ये तो कभी कभी किसी बड़भागी को भगवत्कृपा से प्राप्त होता है। अर्थात् 84 लाख
प्रकार के देहधारियों में केवल मनुष्य देहधारी ही सर्वश्रेष्ठ है। वेदों, शास्त्रों में सर्वत्र इस देह
की भूरि भूरि प्रशंसा की गई है। ज्ञान प्रधान एवं विशेषतः कर्म प्रधान होने के कारण ही
इसकी वंदना की गई है। पुरुषार्थ करने का अधिकार केवल मनुष्य को प्राप्त है। भक्ति रूपी
पुरुषार्थ के द्वारा इसमें भगवान को प्राप्त करके जीव सदा सदा के लिए कृतार्थ हो सकता है,
आनंदित हो सकता है और एकमात्र भगवत्प्राप्ति के उद्देश्य से ही ये देह हमें दिया गया है।
अर्थात् ये देह एक अनमोल हीरे के समान है जो हमारे कल्याण के लिए भगवान द्वारा उपहार
स्वरूप हमें प्रदान किया गया है। लेकिन इसका मूल्य न समझने के कारण ही अधिकांश लोग इस देह द्वारा सासरिक विषयों का उपभोग करके निरंतर इसका दुरुपयोग कर रहे हैं, इसके
एक-एक मूल्यवान क्षण को व्यर्थ गँवा रहे हैं। संसार में आसक्त होने, दैहिक सुखों को लक्ष्य
बनाने का परिणाम केवल 84 लाख योनियों में भ्रमण करते हुए अनंतानंत दुःख भोगना ही है।
इसीलिए ऐसे अविवेकी मनुष्य को तुलसीदास जी ने आत्महत्यारा कहा है -
‘जो न तरै भवसागर नर समाज अस पाई,
सो कृत निंदक मंदमति आतमहन गति जाई।‘
अतएव विवेकी पुरुष को इस देवदुर्लभ अमूल्य रत्न रूपी देह का महत्व समझकर
इसके द्वारा अपने परम चरम लक्ष्य भगवत्प्राप्ति के लिए ही प्रयास करना चाहिए अन्यथा
‘पुनरपि जननं पुनरपि मरणं, पुनरपि जननी जठरे शयनम्‘ बारंबार जन्म मरण का चक्र चलता
रहेगा और अनेकानेक दुःख सहता हुआ जीव इस भवाटवी में घूमता रहेगा। जैसे हाथ में आए
रत्न को फेंक देना नासमझी है, इसी प्रकार इस अनमोल मानव देह रूपी रत्न का मूल्य न
समझकर संसार में इसका दुरुपयोग करना भी पराकाष्ठा का अज्ञान है।

Thursday, May 21, 2020

मानव देह प्राप्त सभी जीव परम सौभाग्यशाली हैं। देवताओं से भी अधिक बड़भागी
हैं। नारद पुराण में कहा गया -
‘दुर्लभं मानुषं जन्म प्रार्थ्यते त्रिदशैरपि‘
अर्थात् देवता भी इस देह को पाने के लिए लालायित रहते हैं लेकिन यह देह उनके
लिये भी दुर्लभ है। रामायण कहती है -
‘कबहुँक करि करुणा नर देही, देत ईश बिनु हेतु सनेही‘
ये तो कभी कभी किसी बड़भागी को भगवत्कृपा से प्राप्त होता है। अर्थात् 84 लाख
प्रकार के देहधारियों में केवल मनुष्य देहधारी ही सर्वश्रेष्ठ है। वेदों, शास्त्रों में सर्वत्र इस देह
की भूरि भूरि प्रशंसा की गई है। ज्ञान प्रधान एवं विशेषतः कर्म प्रधान होने के कारण ही
इसकी वंदना की गई है। पुरुषार्थ करने का अधिकार केवल मनुष्य को प्राप्त है। भक्ति रूपी
पुरुषार्थ के द्वारा इसमें भगवान को प्राप्त करके जीव सदा सदा के लिए कृतार्थ हो सकता है,
आनंदित हो सकता है और एकमात्र भगवत्प्राप्ति के उद्देश्य से ही ये देह हमें दिया गया है।
अर्थात् ये देह एक अनमोल हीरे के समान है जो हमारे कल्याण के लिए भगवान द्वारा उपहार
स्वरूप हमें प्रदान किया गया है। लेकिन इसका मूल्य न समझने के कारण ही अधिकांश लोग इस देह द्वारा सासरिक विषयों का उपभोग करके निरंतर इसका दुरुपयोग कर रहे हैं, इसके
एक-एक मूल्यवान क्षण को व्यर्थ गँवा रहे हैं। संसार में आसक्त होने, दैहिक सुखों को लक्ष्य
बनाने का परिणाम केवल 84 लाख योनियों में भ्रमण करते हुए अनंतानंत दुःख भोगना ही है।
इसीलिए ऐसे अविवेकी मनुष्य को तुलसीदास जी ने आत्महत्यारा कहा है -
‘जो न तरै भवसागर नर समाज अस पाई,
सो कृत निंदक मंदमति आतमहन गति जाई।‘
अतएव विवेकी पुरुष को इस देवदुर्लभ अमूल्य रत्न रूपी देह का महत्व समझकर
इसके द्वारा अपने परम चरम लक्ष्य भगवत्प्राप्ति के लिए ही प्रयास करना चाहिए अन्यथा
‘पुनरपि जननं पुनरपि मरणं, पुनरपि जननी जठरे शयनम्‘ बारंबार जन्म मरण का चक्र चलता
रहेगा और अनेकानेक दुःख सहता हुआ जीव इस भवाटवी में घूमता रहेगा। जैसे हाथ में आए
रत्न को फेंक देना नासमझी है, इसी प्रकार इस अनमोल मानव देह रूपी रत्न का मूल्य न
समझकर संसार में इसका दुरुपयोग करना भी पराकाष्ठा का अज्ञान है।

ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् ।
( गीता.४-११ )
अर्थात् भोले लोग समझते हैं कि मैं आत्माराम पूर्णकाम हूँ। अतएव कुछ नहीं करता। यद्यपि जनसाधारण के लिये यह ठीक है,किन्तु यदि कोई मेरी शरण में आता है, तो मैं उसकी सेवा करता हूँ। जैसे नवजात शिशु की सेवा माँ करती है वैसे ही मैं शरणागत का भजन करता हूँ।आपको यदि यह विश्वास हो जाय कि भगवान् हम नगण्य जीवों का भजन केवल शरणागति मात्र से ही करते हैं तो तत्क्षण आप शरणागत हो जायें।
#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज
अरे मूर्ख मन ! इस परम अन्तरंग तत्वज्ञान को समझ ले। तीन तत्व नित्य हैं – पहला #ईश्वर, दूसरा #जीव, एवं तीसरा तत्व #माया । इनमें माया चिदानन्दमय ईश्वर की जड़ शक्ति है एवं जीव चिदानन्दमय ईश्वर का सनातन दास है, जिसे वेदादिकों में अंश शब्द से विहित किया गया है। जीवात्मा देही है तू उसको देह मान रहा है, बस यही अनादिकालीन तेरा अज्ञान है । जो इस बात को जितना जान लेता है, उतना ही उस पर विश्वास भी कर लेता है, उसके जानने की यही पहिचान है। पुन: जो जितनी मात्रा में उपर्युक्त बात पर विश्वास कर लेता है, उतनी ही मात्रा में अपने आप उसका श्यामसुन्दर के चरणों में अनुराग हो जाता है। ‘#श्री_कृपालु_जी’ कहते हैं :- अरे मन ! अब मनमानी छोड़ दे, एवं मनमोहन में रूपध्यान द्वारा अपने आप को अनुरक्त कर ।
#प्रेम_रस_मदिरा#सिद्धान्त_माधुरी )
#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज
--- सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति।
भगवान् की कोई चीज लिमिटेड नहीं होती।
अनंत नाम, अनंत गुण, अनंत लीला,
अनंत धाम, अनंत संत, अनंत ब्रह्माण्ड,
सब सामान उनका अनंत होता है—
संख्याचेत् रजसामस्ति न विश्वानां कदाचन।
(देवी पुराण)
यो वा अनन्तस्य गुणाननन्ताननुक्रमिष्यन् स तु बालबुद्धिः।
(११-४-२, भागवत)
जो भगवान् के, श्रीकृष्ण के गुणों की संख्या करे,
इतने गुण हैं, लिखे हैं, चौंसठ गुण,
भक्तिरसामृत सिन्धु वगैरह में।
ये क्या है?
वो बाल बुद्धि, वो बच्चा है, जो कहता है, इतने गुण हैं।
अनंत हैं—
गुणात्मनस्तेऽपि गुणान् विमातुं हितावतीर्णस्य क ईशिरेऽस्य।
(भागवत १०-१४-७)
कौन समर्थ है उनके गुणों को गिनने में?
नान्तं गुणानामगुणस्य जग्मुः।
(१-१८-१४, भागवत)
अनंत गुण हैं, अनंत नाम हैं,
‘अनंत नाम रूपाय’ सब जानते हैं—
कं ब्रह्म खं ब्रह्म ।
(छान्दोग्योपनिषद् ४-१०-५)
ये क, ख, ‘अकारो वासुदेवः’, सब भगवान् के नाम हैं।
अरे बताओ यशोदा मैया ने कभी ‘कृष्णाय नमः’ कहा है क्या?
ओ कनुआ! इधर आ, ओ बलुआ कहाँ गया?
ये लो। हा-हा! वो तो—
भावग्राह्यमनीडाख्यं भावाभावकरं शिवम्।
(श्वेताश्वतरोपनिषद्, ५-१४)
वो...ये सब पण्डिताई नहीं देखते भगवान्।
वो तो प्रेम देखते हैं।
तो वेद में चार प्रकार के मन्त्र हैं
और देखने में, सुनने में, पढ़ने में, विरोधी लगते हैं।
लेकिन ऐसा नहीं है। वो सब सही हैं।
उनका समन्वय केवल भगवान् कर सकते हैं या
सिद्ध महापुरुष।
अहाऽऽ
वेदो नारायणः साक्षात्
(भागवत् ६-१-४०)
वेदव्यास का चैलेंज है।
वेद भगवान् के स्वरूप हैं—
वेदस्य चेश्वरात्मत्वात् तत्र मुह्यन्ति सूरयः॥
(भागवत् ११-३-४३)
अरे ब्रह्मा नहीं समझ सका बेचारा—
तेने ब्रह्म हृदा य आदि कवये मुह्यन्ति यत्सूरयः।
(भागवत् १-१-१)
इसीलिये वेद कहता है—
तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत्
समित्पाणिः श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम्॥
(१-२-१२, मुण्डकोपनिषद्)
----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
O stubborn and foolish mind! Besides spoiling yourself, you are spoiling me as well. You have wasted countless lives wandering around in the material world, but have refused time and time again to surrender to the merciful Radha Rani, who is waiting with open arms to embrace you. It is not too late. Go to Radhe Rani. She will forgive you and accept you as Her own.
#JAGADGURU_SHRI_KRIPALU_JI_MAHARAJ.
Comments

महल की सेवा जो ना दे सके श्यामा।
कुञ्ज की ही सेवा दे दे वृन्दावन धामा।।
भावार्थः- हे श्री राधे! यदि तुम मुझे अपने महल की सेवा न दे सको तो श्री वृन्दावन धाम में कुंज की ही सेवा प्रदान कर दो।
(श्यामा श्याम गीत)
#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित:-राधा गोविन्द समिति।
#Spiritual_Awakening
Article by Badi Didi (H.H.Dr.Vishakha Tripathi, President, Jagadguru Kripalu Parishat, Shri Bhakti Dham, Mangarh) in Times of India, Delhi Page 13 (16.05.2020).
सदा सर्वत्र हर श्वाँस के साथ '#राधे' नाम का जप करो।
#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज
संसार में व्यवहार कुशल बनो परिवार वालों से अच्छा व्यवहार करो अपनी duty अच्छे से निभाओ। लेकिन मन का प्यार भगवान से करो। ये जाने रहो कि एक दिन संसार की सभी रिश्ते और वस्तुएं खत्म हो जाएगी ।
सारा जीवन #श्री_महाराज_जी ने हमारे कल्याण के लिए समर्पित किया। क्षण-क्षण हमारे उत्थान के लिए आतुर उन्होंने हम जीवों की ही सेवा की।
उनका ऋण, उनके उपकार हम पर इतने हैं कि न वे गिने जा सकते हैं, न समझे जा सकते हैं, न ही कभी उतारे ही जा सकते है।
उनकी कही बातें, उनके आदेश हम सहर्ष मानें...! वे जैसे भी सुख पाते हैं, वैसा करें, वैसा बनें... इतना तो कर ही सकते हैं। इसमें हमारा ही कल्याण है।
संसार की आसक्ति को हटाकर हरि-गुरु में प्रेम बढ़ाएंगे, नित्य निरंतर उन्हीं का चिंतन करेंगे ।उन्हीं की सेवा के लिए प्लानिंग करेंगे। उनकी कृपाओं को सोच-सोच कर बलिहार जायेंगे और अपनी गलतियों की क्षमायाचना तथा उनकी सेवा और प्रेम पाने के लिए निष्काम रुदन करेंगे।
फिर भी भला हम पामर जीव उनका क्या उपकार उतार पाएंगे.. 'आज्ञा सम न सुसाहिब सेवा'.. यही मानकर उनके कहे पर चल सकते हैं।
करुणावरुणालय उन '#कृपालु_गुरुदेव की सदा ही जय हो....!!!!!
जय-जय श्री राधे।